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अर्जुन की मृत्यु पर देवी गंगा क्यों मुस्कुराने लगी

कुंती पुत्र अर्जुन को महाभारत के समय का सबसे बड़ा धनुर्धर माना गया है। ऐसा भी माना जाता है कि अर्जुन के पास अगर धनुष चलाने का कौशल नहीं होता तो पाण्डव शायद ही महाभारत युद्ध जीत पाते। साथ ही अधिकतर लोग यही जानते हैं की अर्जुन की मृत्यु पांडवों के सशरीर स्वर्ग यात्रा के दौरान हुई थी।

लेकिन  महाभारत में एक ऐसे भी कथा पढ़ने को मिलता है जिसमे में बताया गया है की अर्जुन की इससे पहले भी एक बार मृत्यु हो चुकी थी और देवी गंगा अर्जुन की मृत्यु पर मुस्कुराने लगी थी।

तो आइये जानते हैं की आखिर अर्जुन की मृत्यु पर देवी गंगा क्यों मुस्कुराने लगी थी।

अश्वमेघ यज्ञ

कथा के अनुसार महाभारत युद्ध में विजयी होने के बाद ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने। कुछ दिन पश्चात् श्री कृष्ण के कहने पर युधिष्ठिर ने अश्वमेघ यज्ञ आरम्भ किया। नियमानुसार यज्ञ के अश्व को अर्जुंन के नेतृत्व में छोड़ दिया गया।

अश्व जहाँ जहाँ जाता अर्जुन अपनी सेना के साथ उसके पीछे-पीछे जाते। इस दौरान यज्ञ का अश्व कई राज्यों से गुजरा जिसमे से कई राज्य के राजाओं ने तो अर्जुन से युद्ध किये बिना ही हस्तिनापुर की आधीनता स्वीकार कर ली और जिसने ऐसा नहीं किया उसे अर्जुन ने युद्ध में परास्त कर अपने अधीन कर लिया।

अर्जुन और पुत्र बभ्रुवाहन का युद्ध

इसी क्रम में अश्वमेघ यज्ञ का अश्व एक दिन मणिपुर पहुंचा। उस समय मणिपुर का राजा अर्जुन और चित्रांगदा का पुत्र बभ्रुवाहन था।

बभ्रुवाहन ने जब ये सुना की उसके पिता अर्जुन उसके राज्य में पधारे है तो वह उनके स्वागत के लिए राज्य की सिमा पर जा पहुंचा। और अपने पिता अर्जुन को देखते ही वह उनके स्वागत के लिए आगे बढ़ा लेकिन अर्जुन ने उसे रोक दिया।

अर्जुन बभ्रुवाहन से कहा की मैं इस समय तुम्हारा पिता नहीं हूँ बल्कि हस्तिनापुर नरेश का प्रतिनिधि हूँ इसलिए क्षत्रिय नियमानुसार तुम्हे इस समय मुझसे से युद्ध करना चाहिए। उसी समय अर्जुन की दूसरी पत्नी उलूपी वहां आ गई । और बभ्रुवाहन से बोली हे पुत्र तुम्हे अपने पिता के साथ युद्ध करना चाहिएअगर तुम युद्ध नहीं करोगे तो ये तुम्हारे पिता का अपमान होगा।

माता की आज्ञा पाते ही बभ्रुवाहन युद्ध के लिए तैयार हो गया। इसके बाद अर्जुन और बभ्रुवाहन के बिच घोर युद्ध हुआ

अर्जुन की मृत्यु

काफी समय तक युद्ध चलने के बाद जब कोई परिणाम नहीं निकला तो बभ्रुवाहन ने कामाख्या देवी से प्राप्त दिव्य बाण से अर्जन पर प्रहार किया जिससे अर्जुन का सर धड़ से अलग हो गया। यह देख हस्तिनापुर की सेना में सन्नाटा पसर गया क्यूंकि युद्ध में बभ्रुवाहन ने अर्जुन से पहले भीम को भी परास्त कर दिया था।

इधर यह बात जब श्री कृष्ण को पता चला तो वो तत्काल द्वारका से मणिपुर के लिए निकल पड़े। उधर अर्जुन की माता कुंती भी अर्जुन की मृत्यु की खबर सुनकर मणिपुर के लिए निकल पड़ी। मणिपुर पहुंचकर अर्जुन को धरती पर पड़ा देख श्री कृष्ण को गहरा धक्का लगा।

तभी श्री कृष्ण ने देखा की देवी गंगा अर्जुन की मृत्यु पर मुस्कुरा रही है। इतने में ही कुंती भी वहां पहुंच गयी और अपने पुत्र के शव को गोद में रखकर विलाप करने लगी।

कुंती का विलाप

कुंती को विलाप करता देख देवी गंगा से रहा नहीं गया और वह कुंती से बोली –

हे कुंती तुम व्यर्थ में रो रही हो क्यूंकि तुम्हारे पुत्र अर्जुन को उसके कर्मो का फल मिला है। मेरा पुत्र भीष्म इसे अपनी पुत्र की तरह स्नेह करता था फिर भी इसने श्रीखंडी का सहारा लेकर मेरे पुत्र भीष्म का वध कर डाला। मैं भी उस समय ऐसे ही रोई थी जैसे तुम आज अपने पुत्र के लिए रो रही हो। मैंने अपने पुत्र के वध का बदला ले लिया। क्यूंकि जिस कामाख्या देवी के बाण से बभ्रुवाहन ने अर्जुन का सिर धड़ से अलग किया है वो मेरे द्वारा ही प्रदान किया गया था।

देवी गंगा की मुख से बदले की बाते सुनकर श्री कृष्ण हैरान हो गए। और बोले हे देवी आप किस बदले की बात कर रही हैं ,आप किस किस से बदला लेंगी अर्जुन की माता कुंती से या फिर अर्जुन से ,आप एक माता से प्रतिशोध कैसे ले सकती है।

तब देवी गंगा ने कृष्ण से कहा हे – ” वासुदेव ये तो आप जानते ही हानि की अर्जुन ने उस समय मेरे पुत्र का वध किया जब वो निहत्था था।अर्जुन का ऐसा करना जब उचित था तो अर्जुन का वध उसी के पुत्र द्वारा करा कर मैंने क्या गलत किया।”

अर्जुन हुआ पुनर्जीवित

तब श्री कृष्ण देवी गंगा को समझते है की अर्जुन ने जिस तरह से अपने पितामह का वध किया वो स्थिति स्वंय पितामह ने अर्जुन को बताई थी। क्यूंकि पितामह जानते थे की उनके होते हुए पांडवों की विजय असंभव थी। इसलिए उन्होंने स्वंय युद्ध से हटने का मार्ग अर्जुन को बताया था।

अर्जुन ने तो बभ्रुवाहन के प्रहारों को सिर्फ रोका है। स्वंय प्रहार तो नहीं किया। अर्जुन ने तो कामाख्या देवी द्वारा दिए गए दिव्य बाण और आपका मान बढ़ाया है। कृष्ण के तर्क सुनकर गंगा दुविधा में पर पड़ गयी। और श्री कृष्ण से इस दुविधा से बाहर निकलने का मार्ग बताने को कहा। तब जाकर कृष्ण ने देवी गंगा से प्रतिज्ञा को वापस लेने को कहा। फिर देवी गंगा ने अर्जुन के सिर को धड़ से जोड़े जाने का रास्ता बताया। और उसके बाद श्री कृष्ण ने अर्जुन की दूसरी पत्नी और बभ्रुवाहन की सौतेली माँ उलूपी से प्राप्त नागमणि द्वारा अर्जुन को जीवित कर कर दिया।

 

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