बचपन से ही हम सब अपने घरों में एक प्रथा देखते आये हैं।
हर शनिवार को शनिदेव को तेल अर्पित करने और उस तेल में अपने चेहरे को देखने की। जैसा कि हम देखते हैं की घर के बड़े धर्म से सम्बंधित जिन बातों का पालन करते हैं उनका उल्लेख शास्त्रों और पुराणों में अवश्य मिलता है।
तो आइये जानते हैं पुराणों के अनुसार शनि देव को तेल अर्पित करने का क्या महत्त्व है? आखिर शनिदेव को तेल क्यों चढ़ाया जाता है? और इस तेल में अपना चेहरा देखने का क्या महत्त्व है?
शनिदेव को तेल अर्पित करने के विषय में दो कथाएं प्रचलित हैं
शनिदेव और हनुमान
एक कथा के अनुसार शनि देव को अपनी शक्ति और पराक्रम पर बहुत अहम् हो गया था। उस काल में ही राम भक्त बजरंग बलि के पराक्रम और बल की हर ओर चर्चा होती थी।
जब शनिदेव को इस बात का पता चला तो वो हनुमान जी से युद्ध करने के लिए निकल पड़े, वहां उन्होंने देखा कि हनुमान जी एकांत में बैठकर श्री राम की भक्ति में लीन थे। शनि देव ने हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारा।
हनुमान जी ने समझाते हुए कहा कि वो अभी अपने प्रभु श्री राम का ध्यान कर रहे हैं। हनुमान जी ने शनिदेव से जाने के लिए कहा, परन्तु शनिदेव उन्हें युद्ध के लिए ललकारते रहे औरहनुमान जी के बहुत समझाने पर भी नहीं माने और युद्ध करने की बात पर अड़ गए।
तब हनुमान जी ने फिर से समझाते हुए कहा कि मेरा रामसेतु की परिक्रमा का समय हो रहा है, आप कृपया यहाँ से चले जाइये।
शनिदेव के न मानने पर, हनुमान जी ने शनिदेव को अपनी पूँछ में लपेट लिया और परिक्रमा करने लगे।
शनिदेव का पूरा शरीर धरती और रास्ते में आयी चट्टानों से घिसता जा रहा था और पुरे शरीर में घाव हो गए। उनके शरीर से रक्त निकलने लगा और बहुत अधिक पीड़ा होने लगी। तब शनि देव ने हनुमान जी से क्षमा मांगते हुए कहा कि मुझे अपनी उद्दंडता का परिणाम मिल गया है। कृपया मुझे मुक्त कर दें।
तब हनुमान जी ने कहा यदि मेरे भक्तों की राशि पर तुम्हारा कोई दुष्प्रभाव नहीं होने का वचन दो तो मैं तुम्हे मुक्त कर सकता हूँ। शनिदेव ने वचन देते हुए कहा कि आपके भक्तों पर मेरा कभी दुष्प्रभाव नहीं होगा। तब हनुमान जी ने शनिदेव को मुक्त किया और उनके घायल शरीर पर तेल लगाया जिससे शनिदेव को पीड़ा में आराम मिला।
तब शनिदेव ने कहा कि जो व्यक्ति मुझे तेल अर्पित करेंगे उनका जीवन समृद्ध होगा और मेरे कारण उन्हें कोई कष्ट नहीं होगा। और तब से ही शनि देव को तेल अर्पित करने की परंपरा का आरम्भ हुआ।
रावण और शनिदेव
दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार, रावण ने एक बार सभी ग्रहों को अपने अनुसार राशि में बैठाया परन्तु शनि देव ने रावण की बात मानने से मना कर दिया इसलिए रावण ने उन्हें उल्टा लटका दिया।
जब हनुमान जी लंका पहुंचे तब रावण ने उनकी पूँछ में आग लगा दी, हनुमान जी ने पूरी लंका को जला दिया। सभी बंदी ग्रह भाग गए परन्तु उल्टा लटका होने के कारन शनिदेव नहीं भाग पाए। शनिदेव की देह में बहुत पीड़ा हो रही थी तब हनुमान जी ने शनि देव को तेल लगाया जिससे शनि देव की पीड़ा कुछ कम हुई।
जिसके पश्चात शनिदेव ने कहा कि आज से मुझे तेल अर्पित करने वाले सभी व्यक्तियों की पीड़ा मैं हर लूंगा।
तब से ही शनिदेव को तेल अर्पित किया जाने लगा। शनि देव को तेल देते समय उस तेल में चेहरा देखने से शनिदोषों से मुक्ति प्राप्त होती है और समृद्धि का आगमन होता है।
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